पन्छी जब आता है लौटकर , लम्बी उडान से ,,
डालियां आज भी सिर झुका लेती है सम्मान से ।
दर्द रिश्तों का
नवरात्र का त्योहार है आया,
अन्तर्मन मे यादों का गुब्बार लाया ।
नवरात्र के लिये हुई जौ बोने की तैयारी ,,
बच्चे-बडे लाते हैं, पत्ते मिट्टी न्यारी-न्यारी।
वो गायों का सुबह-शाम रम्भाना
दूध के लिये अपने प्रेमीजनों को बुलाना।
गायें जाती जंगल चरने, बछ्डे-बछ्डी करते इन्तजार
शाम को माँ आयेंगी जरुर ऐसा उनको ऐतबार्।
नयी फ़सल के लिये बैलों से किसान जोतते खेत,
अच्छी से अच्छी तैयारी करते एक से बढ्कर एक्।
आज याद आती खेतों में चलते भोला,
हीरा-मोती के गले की घंटी की आवाज,
ऐसा लगता कर्ण-पटल पर जैसे
स्वर्ग में बज रहा है कोई मधुर साज्।
वो हल चलाते हुए किसान का हुं,आ,हट करना,
उसके बैलों का सुनना और उन हा, अ, हट पर डरना्।
किसान जुडा रहता बैलों से,जैसे हो उसकी सन्तान,
बैल भी समर्पित स्वामी पर, खडे रहते थे उनके कान।
गेंहु की बुआई में सभी जन-बच्चों का खेत में जाना;
याद आते हैं अब वो दिन जब खेत में खाते थे खाना।
ऐसा लगता है उन दिनों में, हम थे रिस्तों से इन्सान
समय बिता दिन बीते हो गया भाई के लिये भाई मेहमान्।
माया ने बनाई यह दूरी, खेल के अपनी चाल’
रिस्ते- नाते बिखर रहे हैं चारों तरफ है माया जाल।
माया के चक्कर में हम, फ़ंस गये ऐसे आज
बेटा बाप से पुछ रहा है कंहा है हिसाब-किताब।
लालची ऐसे बन गये हम, खिंची ऐसी चारों ओर लकीर
पत्नी और बच्चों के चक्कर में, जीवन बना फ़कीर्।
क्या पत्नी-बच्चों के अलावा नही कोई रिस्ता-नाता
चाहते हुऐ भी इन्सान बहन-भाई,माँ-बाप के लिए कुछ नही कर पाता।
जागो मेरे प्यारों जागो, अपनो से
करो न अब कोइ विवाद
प्यार-प्रेम को बढाकर जग में
लो शुभकामना और आशीर्वाद्।
लोकेश कुमार चौहान
पंजनहेड़ी ।
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