बेटी
आँखो मे एक सपना था
जो प्रतीक्षा के बाद हुआ साकार
इस जीवन की कठिन चुनौती
वो दिन था शुक्रवार
माँ कब से सोचती थी
मेरी बेटी कब सम्मान बढाएगी
दुनिया की आँखो मे वह
कब चमत्कार दिखाएगी
जवाहर लाल का नाम
रोशन करती उसकी बेटी इकलौती
अब सम्मान बढाने वाली
'बाबा' की है पोती
मेरी बेटी आगे बढती जाओ
होकर सफल निरन्तर
भेद भाव न हो जीवन मे
ना हो ऊँच नीच का अन्तर
बेटी की प्रथम नियुक्ति पर
आँखो मे अश्रु भर आये
यह खुशी जैसे वृक्ष फलो से आच्छादित होकर
मन मे प्रसन्नता भर लाए
मेरे लिए अदभुत् था वह पल
जब आया फोन तुम्हारा
नियुक्ती पत्र की बात सुनकर
मन गौरवान्वित हुआ, सुन्दर लगा जग सारा
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