Wednesday, 19 November 2014

hamari soch


हमारी सोच
आज हर आदमी है
आदमी से परेशान,
इन्सानियत जा रही बिख्ररती
हम बन रहे सैतान
अपने ही अपनो को
दे रहे धोखा,
अब बचा नही है धरती पर
प्रदुषण से, कोई हवा का झोखा
                  गंगा, यमुना तडफ़ रही हैं
अपनी लाज को बचाने,
हर गली-हर नुक्कड पर
हैं लाखों शराबखाने
बारुद के ढेर पर
हम आज हैं बैठे ,
कैसे दुसरे को नीचा दिखायें
इसी नशे में ही ऐठें

जब  हो जायेंगे बरबाद,
उजड जायेगा ये चमन
क्या फिर ,खत्म हो जायेगी दुश्मनी
फ़ैलेगा हर तरफ अमन ?
कभी थी सोने की चिडिया
अपना यह प्यारा देश,
दिल रो रहा है आज देखकर
पश्चिमी व्यवस्था और परिवेश
समय रहते बदल लें
कर लें सकारात्मक सोच और मन ,
बदलकर इस व्यवस्था को
फैलायें शान्ति और अमन

No comments:

Post a Comment