हमारी सोच
आज हर आदमी है
आदमी से परेशान,
इन्सानियत जा रही बिख्ररती
हम बन रहे सैतान ।
अपने ही अपनो को
दे रहे धोखा,
अब बचा नही है धरती पर
प्रदुषण से, कोई
हवा का झोखा ।
गंगा, यमुना
तडफ़ रही हैं
अपनी लाज को बचाने,
हर गली-हर
नुक्कड पर
हैं लाखों शराबखाने ।
बारुद के ढेर पर
हम आज हैं बैठे ,
कैसे दुसरे को नीचा दिखायें
इसी नशे में ही ऐठें ।
जब हो जायेंगे बरबाद,
उजड जायेगा ये चमन
क्या फिर ,खत्म
हो जायेगी दुश्मनी
फ़ैलेगा हर तरफ अमन ?
कभी थी सोने की चिडिया
अपना यह प्यारा देश,
दिल रो रहा है आज देखकर
पश्चिमी व्यवस्था और परिवेश ।
समय रहते बदल लें
कर लें सकारात्मक सोच और मन ,
बदलकर इस व्यवस्था को
फैलायें शान्ति और अमन ।
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